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Tuesday, 24 March 2015
Truth of life
एक कमरा था जिसमें मैं रहता था माँ-बाप के संग, घर बड़ा था इसलिए इस कमी को पूरा करने के लिए मेहमान बुला लेते थे हम! फिर विकास का फैलाव आया विकास उस कमरे में नहीं समा पाया जो चादर पूरे परिवार के लिए बड़ी पड़ती थी उस चादर से बड़े हो गए हमारे हर एक के पूजनीय लोग झूठ कहते हैं कि दीवारों में दरारें पड़ती हैं हक़ीक़त यही कि जब दरारें पड़ती हैं तब दीवारें बनती हैं! पहले हम सब लोग दीवारों के बीच में रहते थे अब हमारे बीच में दीवारें आ गईं यह समृद्धि मुझे पता नहीं कहाँ पहुँचा गई। पहले मैं माँ-बाप के साथ रहता था, अब माँ-बाप मेरे साथ रहते हैं फिर हमने बना लिया एक मकान एक कमरा अपने लिए एक-एक कमरा बच्चों के लिए एक वो छोटा-सा ड्राइंगरूम उन लोगों के लिए जो मेरे आगे हाथ जोड़ते थे एक वो अन्दर बड़ा-सा ड्राइंगरूम उन लोगों के लिए जिनके आगे मैं हाथ जोड़ता हूँ पहले मैं फुसफुसाता था तो घर के लोग जाग जाते थे मैं करवट भी बदलता था तो घर के लोग सो नहीं पाते थे और अब!
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